
तेल का परिवहन अधिकतर समुद्री मार्ग से होता है भारत 70% तेल का परिवहन जलीय मार्ग से आयात करता है।
आज मै आपको बताने जा रही हूं कि जलीय जीव जंतुओं का जीवन मानवीय क्रियाओं के कारण कैसे खतरे में है
हमारी दुनिया जैसी एक छोटी सी दुनिया समुद्र में भी बसती है जिसमें कई तरह के जलीय जीव जिनमे छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी मछलियां , कछुए, मेंढक, समुद्री ऊदबिलाव, पक्षी, कई प्रकार के पेड़ - पौधे और अन्य कई प्रकार के जीव पाए जाते हैं।जो कि अपनी दुनिया में मस्त होते है पर आपको ये जानकर हैरानी होगी कि मानवीय क्रियाओं के कारण दिन पर दिन इनका जीवन खतरे में पड़ रहा है। इनमें प्लास्टिक का ढेर और तेल का रिसाव सबसे बड़े कारण है।
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तेलो के रिसाव के कारण तरल पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन समुद्र में मुक्त हो जाते है वे पानी में पूरी तरह मिलते तो नहीं है परन्तु जल के ऊपरी सतह पर तैरने लगते है एक हफ्ते के अंदर जल कि ऊपरी सतह पर मोटी परत बना लेते है हल्के भार वाले कन वाष्पीकृत हो जाते है तथा घुलने वाले कण पानी में घुल जाते है और जो नहीं घुलते वे छोटे छोटे कनो में फैल जाते हैें । ये पर्यावरण, जलीय जीवन,पक्षियों को प्रभावित करते है।
तेल के रिसाव से तेल जल के ऊपर तैरने से सूर्य की किरणे समुद्र के अंदर नहीं जा पाती जिससे समुद्री पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण कि प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाते और वे मर जाते है जिससे उनकी आबादी कम हो रही है इस परत के कारण ऑक्सीजन की पूर्ति में भी कमी आती है जिससे जलीय जीवों को ऑक्सीजन नहीं मिलता दम घुटने से उनका जीवन खत्म हो जाता है।पक्षी जब इन तेल कि परत पर बैठते है ये उनके पैरों तथा पंखों में चिपक जाते है जिससे उन्हें उड़ने में परेशानी होती है उनकी उड़ने कि क्षमता में कमी आती है।पक्षी अपनी चोंच से पंखों को खुजाते है और तेल को निगल जाते है जो उनकी पाचन तंत्र को खराब कर देते है।उन्हें खाने पीने में दिक्कत आती है जिससे अधिकतर पक्षी मर जाते है
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इसी तरह दूसरे समुद्री स्तनधारी भी तेल निगल जाते है जिससे उनकी भी पाचन क्रिया में खराबी आती है रोधक क्षमता में कमी आती है। जलीय जीव जैसे मछलियां जब तेल के कणों जो पानी में घुल जाते है को खाते है जिससे उनकी तबीयत खराब हो जाती है पर्याप्त ऑक्सीजन ना मिलने से दम घुटने के कारण मर जाते है । तेल को पानी से अलग करने में सालो साल लग जाते है। इसी तरह प्लास्टिक भी समुद्री जीवन के लिए खतरा बनता जा रहा है। ![]() समुद्रों में प्लास्टिक कचरा तीन कारणों से जाता है पहला कारण- समुद्री तटों पर जाने वाले लोग वहां प्लास्टिक की बोतल, पैकेट, पॉलीथिन फेक के आते है।दूसरा कारण है समुद्र में तैरने वाले जहाज बड़ी मात्रा में प्लास्टिक समुद्र में डाल देते है तथा तीसरा कारण है नदियों के द्वारा प्लास्टिक समुद्र में पहुंचता है।इनसे समुद्र में प्लास्टिक के पहाड़ बन गए है।पिछले 70 सालो में भारत में प्लास्टिक की मांग बेतहाशा बढ़ी है। समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण का बहुत घातक प्रभाव पड़ता है।बहुत से समुद्री जीव ,मछलियों ,मेंढ़क , कछुए , पक्षी प्लास्टिक के मुंह में फसने या निगलने के कारण मर जाते है। प्लास्टिक में मिले केमिकल वाले जहर से जीवों कि संरचनात्मक इकाई बदलने लगी है पौधों वनस्पति को भी नुकसान पहुंच रहा है। ![]() कुछ साल पहले ही मुंबई के तट से कुछ दूरी पर दो जहाजों के बीच टक्कर से तेल का रिसाव हुआ जिसमें करीब 800 टन से अधिक तेल का रिसाव हुआ। जिसे साफ करने में महीनों साल लग जाते है। हाल में रूस के साइबेरिया में पावर प्लांट 20 हजार टन डीजल के रिसाव के बाद अंबरानाया नदी का रंग सफेद से लाल हो गया और इसके सफाई के विषय में ये कहा जा रहा है कि इसको साफ करने में कम से कम 10 साल लग जाएंगे है। हमे आवश्यक है कि हम हमारे जीवन की तरह अपने आस पास के पर्यावरण का भी ख्याल रखे नहीं तो पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ जाएगा हमे सतत विकास की तरफ ध्यान देना चाहिए। हम और जीव जंतुओं के जीवन के बारे में सोचना चाहिए।जब भी समुद्री तट पर घूमने के लिए जाए वहां प्लास्टिक का कचरा ना फैलाए। नदियों की सफाई करनी होगी।प्लास्टिक के कचरे को पुनः इस्तेमाल करना होगा।जहाजों को तेल के रिसाव से बचाने के लिए जहाजों को दोहरे ढांचे से बनाना चाहिए जिससे कितनी ही टक्कर से तेल रिसाव का खतरा कम हो।लोगो को जलीय जीवन के बारे में जागरूक करना होगा। ![]() written by kajal jha |
Nice thought
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